Cheque Bounce Rules: चेक बाउंस के मामले अब सीधे जेल का कारण नहीं बनेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने अपने नए फैसले में स्पष्ट किया है कि ऐसे मामलों में आरोपी को सफाई का पूरा मौका मिलेगा और तुरंत सजा नहीं दी जाएगी। इससे उन लोगों को राहत मिलेगी जो जानबूझकर नहीं बल्कि किसी परिस्थिति के कारण चेक भुगतान नहीं कर पाए। कोर्ट ने यह फैसला पारदर्शिता और न्याय को ध्यान में रखते हुए दिया है।
चेक बाउंस होने की मुख्य वजहें
जब किसी खाते में पर्याप्त बैलेंस नहीं होता और चेक जारी किया जाता है, तो वह बाउंस हो सकता है। इसके अलावा सिग्नेचर मिलान न होना, अधिक कटिंग होना, या चेक की वैधता समाप्त हो जाना भी इस स्थिति को जन्म देता है। इससे सामने वाले व्यक्ति को तय राशि नहीं मिलती और मामला कानूनी विवाद तक पहुंच सकता है। ऐसे मामलों में अब पहले सुधार का अवसर दिया जाएगा।
सुधार का पहला मौका अनिवार्य
कोर्ट ने निर्देश दिया है कि चेक बाउंस होने पर सबसे पहले लीगल नोटिस भेजना जरूरी है। नोटिस मिलने के बाद आरोपी को 15 दिन का समय मिलेगा, जिसके अंदर राशि चुका दी जाए तो कोई केस नहीं बनेगा। अगर यह समय बीत जाता है, तो शिकायतकर्ता को 30 दिनों में कोर्ट में केस दर्ज करने का अधिकार होता है। यह प्रक्रिया अब हर मामले में अनिवार्य होगी।
चेक बाउंस से जुड़ी धाराएं
इन मामलों में नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट की धारा 138, 139 और 142 लागू होती हैं। दोष साबित होने पर अधिकतम दो साल की सजा, जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। हालांकि कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि अंतिम फैसला आने से पहले सीधे जेल भेजना जरूरी नहीं है। इस निर्णय से उन व्यापारियों और सामान्य नागरिकों को राहत मिली है जो अनजाने में गलती कर बैठते हैं।
अब यह है जमानती अपराध
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को जमानती अपराध घोषित किया है। यानी अगर कोई व्यक्ति इस मामले में फंस भी जाए तो उसे पहले दिन ही जेल नहीं भेजा जाएगा। आरोपी को तुरंत जमानत मिलेगी और कोर्ट में अपना पक्ष रखने का अवसर मिलेगा। इस बदलाव से न्यायिक प्रक्रिया संतुलित बनेगी और निर्दोष व्यक्ति बेवजह सजा से बच सकेंगे।
कोर्ट में अंतरिम मुआवजे का अधिकार
2019 में लाए गए कानून के तहत अब कोर्ट यह आदेश दे सकता है कि आरोपी शिकायतकर्ता को 20% तक अंतरिम मुआवजा दे। यह राशि केस खत्म होने से पहले दी जा सकती है। अगर बाद में आरोपी केस जीतता है तो उसे यह राशि वापस मिल सकती है। इससे शिकायतकर्ता को लंबे मुकदमे के दौरान आर्थिक राहत मिलती है, और प्रक्रिया अधिक निष्पक्ष बनती है।
अपील का कानूनी अधिकार
अगर किसी व्यक्ति को कोर्ट सजा सुनाता है तो वह CrPC की धारा 374(3) के तहत 30 दिन में ऊपरी अदालत में अपील कर सकता है। साथ ही धारा 389(3) के तहत आरोपी अपनी सजा को स्थगित कराने की मांग भी कर सकता है। इसका अर्थ है कि अंतिम निर्णय आने तक वह जमानत पर बाहर रह सकता है। यह प्रक्रिया न्याय व्यवस्था को संतुलित बनाए रखती है।
गलती हो जाए तो क्या करें
अगर किसी कारणवश आपसे चेक बाउंस हो गया है तो सबसे पहले सामने वाले से बात करें और जल्दी समाधान निकालने की कोशिश करें। नोटिस मिलने पर 15 दिन के अंदर भुगतान कर देना सबसे सरल उपाय है। इससे केस दर्ज नहीं होगा और आप बड़ी कानूनी प्रक्रिया से बच जाएंगे। देर करने पर समस्या और गंभीर बन सकती है, इसलिए तुरंत कार्रवाई करें।
सावधान रहने के जरूरी उपाय
चेक देने से पहले हमेशा यह सुनिश्चित करें कि खाते में पर्याप्त बैलेंस है। सिग्नेचर, तारीख और अमाउंट साफ-साफ और बिना ओवरराइटिंग के भरें। कोई भी चेक एक्सपायर होने से पहले ही इस्तेमाल करें। अगर गलती हो भी जाए तो लीगल नोटिस को नजरअंदाज न करें और समय रहते मामला सुलझा लें। ये साधारण लेकिन अहम उपाय कानूनी जोखिम को कम कर सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट का संतुलित दृष्टिकोण
कोर्ट का मानना है कि कारोबारी और व्यक्तिगत लेन-देन में कठिनाइयां आ सकती हैं लेकिन कोई जानबूझकर धोखाधड़ी करे तो उसे बख्शा नहीं जाएगा। अगर इरादा सही है और आप समाधान की कोशिश कर रहे हैं, तो कानून आपको राहत देगा। यह फैसला कानून को दंडात्मक से अधिक सुधारात्मक बनाने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है।
Disclaimer: यह लेख केवल सामान्य जानकारी के लिए है। चेक बाउंस या अन्य कानूनी मामलों में विशेषज्ञ सलाह लेना जरूरी है। किसी भी कानूनी कार्रवाई से पहले प्रमाणिक स्रोतों और अधिवक्ता से सलाह अवश्य लें। नियम समय के अनुसार बदल सकते हैं।
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